मेरी बिटिया नेहा रानी नेह लगा कर चली गयी
हम सब उसकी बाट जोहते पर वोह लन्दन की भई
कहती डालर में पगार मिलता नही किसी की चिंता है
मौसम बरा सुहाना यहाँ का सब कुछ अच्हा लगता है
बचपन में नेहा चंचल थी दादी की पोती दुलारी थी
चाचा की प्यारी मौसी थी घर भर की वो प्यारी थी
उसकी बहादुरी के किस्से सुन कर सभी अचम्भा करते
कभी नही घबरायी वह चाहे विषम परिस्थिति होती
दिल्ली टेशन पर बचपन में चूथि पापा के तो होश ऊर गए
पापा से पहले टैक्सी से पहुची देख अचम्भित सभी रह गए
खेल कूद में वोह माहिर थी फैशन करना उसको आता
पर रिजल्ट उसका लेने जो जाता, संघ उसके वोह डाटा जाता
कहती आज पुआ ले जाना मम्मी चची उससे डरती
स्कूल की शिसका पुरी करते कलकत्ता का टिकेट कराया कहती पाक - विद्या सीखेंगे होटल स्कूल में नाम लिखाया
ट्रेनिंग के बहाने लन्दन आ गई कहती अभी यही रहना हे अभी अभी तो लन्दन आए नए नए अनुभव लेना है
पल्ली दीदी की नेक सलाह उसे नही भाति हे दीदी जीजा अद्वय के संघ बातें कर कुश हो जाती है
नानी पूछे कब आयेगी समाचार सुन खुश हो जाती मामा हाल जानने को उक्सुक मामी उसकी बाट जोहती दिन में उसका हाल मिले ना मम्मी व्याकुल हो जाती हे पापा को उसका समाचार सुने बिन नीद नही आती है
मम्मी कहती वापस आजा बेटा, नेहा कहती आ जायेंगे अपना वतन परिवार हे अपना कभी भुला न पाएंगे
3 comments:
very nice poem uncle, bahut emotional ho gaye padhne par
:-)
My message for Neha: arre Neha, itni senti poem padh kar to main kahin se bhi apne papa ke paas bhagi chali aati...India main tumhe bahut se jobs milenge aur ghar walon ka pyar bhi milega...hope to see you soon :-)..love..sonal.
dear neha, chitthi ayi hai , ayi hai, vatan se chithi ayi ..... :D
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